राहुल गाँधी पप्पू है उसको कोई सीरियस नहीं लेता ,,,, सिवाय बीजेपी के!
यह बात हम क्यों कह रहे हैं इसके बारे में विस्तार से चर्चा होगी, चर्चा होगी कि क्यों बीजेपी हर हाल में राहुल गाँधी को राजनीती से दूर रखना चाहती है, चर्चा होगी कि कैसे भारतीय मीडिया का स्तर विश्व भर में फिसलता जा रहा है परन्तु मीडिया चॅनेल्स और उनके मालिकों को पैसे के अलावा किसी चीज़ से फर्क नहीं पड़ता,
सबसे पहले बात हम मेनस्ट्रीम मीडिया की करेंगे क्यूंकि भारत में जितने राजनितिक लोचे होते हैं उसमे 90 % रोल मीडिया का रहता है कुछ और शेयर करने से पहले आपको बता दे कि भारतीय मीडिया वर्ल्ड प्रेस मीडिया इंडेक्स में दुनिया के 180 देशों में 161बे नंबर पर है और उन देशों के बारे में भी जान लीजिये जिसको नीचे दिखने के लिए रोज शाम को एंकर भड़का भड़का कर माहौल खराब करते हैं
पाकिस्तान जिसके साथ गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी और महंगाई के लिए हमेशा Comparision किया जाता जब मीडिया से कोई पूछ ले कि भारत में बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी पर बात कर लो , उनका रैंक 150 है, भूटान – 90 श्रीलंका – 135 और भारत यह हाल तब जब भारत को दुनिया कि लार्जेस्ट डेमोक्रेसी कहा जाता है
खैर यह तो हुई मीडिया की औकात
आज की रिपोर्ट की तरफ आते हैं एक बड़े मीडिया हाउस की अहंकारी एंकर ने आदित्य ठाकरे के लिए कहा था की वो दूसरा पप्पू है और यह तब बोलै था जब कांग्रेस और शिवसेना का महाराष्ट्र में गठबंधन हुआ था इसका मतलब यह मैडम विपक्ष को कितना सुनना पसंद करती हैं आप अंदाजा लगा लीजिये
राहुल गाँधी के सम्बन्ध में बात करे तो बीजेपी और बीजेपी ने मिलकर राहुल गांधी के लिए ‘पप्पू’ नाम से बाकायदा अभियान चलाया गया और कई बार आधिकारिक तौर पर बोला गया की राहुल गाँधी को कोई सीरियस नहीं लेता
अब अगर राहुल की राजनीति का खत्म होना तो बीजेपी के लिए विशेष चिंता का विषय नहीं होना चाहिए, क्यूंकि वो तो बीजेपी के लिए अच्छा है अगर उनको कोई सीरियस नहीं लेता और लोग पप्पू समझते हैं फिर बीजेपी क्यों हाथ धोकर उनके पीछे पड़ती है और उनकी राजनीति खत्म करने के लिए कई तरह के प्रयास किए गए हैं।
अब असल बात पर आये तो बीजेपी हमेशा राहुल गाँधी द्वारा देश से बहार दिए जाने वाले बयानों को लेकर उनके पीछे पड़ी रहती है परन्तु क्या आपको लगता है की जो बात राहुल गाँधी विदेशों में करते हैं वो खुद बनाये हुए होते हैं ,,,,नहीं ,,, जो दिक्कते हैं समस्याएं हैं उनपर पहले से ही दुनिया में चर्चा होती रही है। राहुल गांधी ने उसे दोहराया भर है।
मसलन यह कि भारत का मीडिया उस तरह से अभी नहीं काम कर पा रहा है, जैसा कि पहले करता था। यह सवाल दुनिया भर के मीडिया वॉचडॉग उठाते आ रहे हैं।
अगर लोकतांत्रिक मानकों पर भारत का स्थान नीचे जा रहा है तो यह दूसरी संस्थाओं का उठाया मामला है।
ऐसे ही भारत के वित्तीय तौर तरीकों में कुछ समस्या है, तो यह मसला सबसे पहले राहुल गांधी ने नहीं, बल्कि जॉर्ज सोरोस ने उठाया था। जॉर्ज सोरोस दुनिया के वित्तीय दायरे में एक बहुत बड़ा नाम है।
सवाल-जवाब के दौरान सामने आई हैं चीजें
जिन बातों पर सत्ता पक्ष को इतना क्षोभ है, वे सारी बातें राहुल गांधी ने किसी भाषण में या किसी एकतरफा बयान में लिखकर जारी नहीं की हैं। ये चीजें सवाल-जवाब के दौरान सामने आई हैं। सवाल-जवाब को आप भारत में,,, to be precise इंडियन मीडिया को नियंत्रित कर सकते हैं शायद, लेकिन विदेश में कोई राजनेता पब्लिक डोमेन में कुछ कहता है तो मीडिया उससे सवाल करता है और अगर गलत है तो खाल उधेड़ता है
,,,, उस पर सवाल करने से किसी को रोका नहीं जा सकता। और कोई सवाल कर रहा है तो उसका जवाब भी मिलेगा। ऐसे में यह आपत्ति उचित नहीं लगती कि उन्होंने ऐसा क्यों कहा।
जहां तक विदेश में घरेलू राजनीति की बात है, तो यह सही में उचित उचित नहीं है। यह किसी को भी नहीं करनी चाहिए। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि यह गलत परंपरा आखिर शुरू कहां से हुई?
क्या ‘अबकी बार-ट्रंप सरकार’ का नारा अमेरिका जाकर लगाना एक कभी न माफ़ करने लायक गलती नहीं थी? क्या प्रधानमंत्री को दूसरे देश के किसी नेता के लिए कभी भी ऐसा करना चाहिए ?,,, क्या इसपर भारतीय मीडिया ने कभी भी कोई भी सवाल उठाया ,,,,,,,उल्टा वाहवाही करवाने में जुट गया
इससे कभी सही परंपरा कि शुरुआत हो सकती है
इसलिए विदेश में भारत का गंदा कपड़ा न धोने के काम कि शुरुआत अगर किसी को करनी है तो सबसे पहले सत्तारूढ़ पार्टी को करनी होगी।
अब बात करते हैं राहुल गाँधी क्यों जरुरी है ।
जिस तरह से बीजेपी के लिए मोदी जरुरी हैं उसी तरह से कांग्रेस के लिए राहुल गाँधी जरुरी हैं और लोकतंत्र के लिए दोनों जरुरी हैं
राहुल गाँधी ने हाल ही के दिनों में ऐसे कई काम किये हैं जिससे लोग रियल पिक्चर देख पाएं हैं जिसमे भारत जोड़ो यात्रा के दौरान सहनशीलता , विलपॉवर, इंट्रोस्पेक्शन और साफ़ और क्लियर बोलने छवि बनाई है और सरकार कि आँखों में आँखें डाल कर बात करना, मीडिया को उसकी औकात दिखाना आदि शामिल हैं वर्ना लोगों को लगता है कि सारी प्रॉब्लम हिन्दू मुस्लिम और पाकिस्तान से ही जुडी हुई हैं
सम्पादकीय
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