जिला कांग्रेस महासचिव संदीप सांख्यान ने प्रदेश के शिक्षा विभाग की पोल खोलते हुए बताया कि प्रदेश का शिक्षा विभाग 99 के फेर में फंस चुका है। नालायकी की हद तो यह है कि प्रदेश में कोविड 19 के चलते सभी स्कूल बंद हैं और सरकारी स्कूलों में दिया जाने वाले मिड डे मील अवव्यहारिक हो गया है, क्योंकि ऑनलाइन कक्षाएं चल रही है लेकिन उनमें हाजरी कितनी है कोई नहीं जानता, सिर्फ अध्यापकों पर यह बोझ डाला जा रहा है कि कैसे भी हो बच्चों की हाजरी पूरी करवाएं। हमारे शिक्षा मंत्री और शिक्षा सचिव को यह भी पता नहीं है कि क्या सरकारी स्कूलों के बच्चों के पास मोबाइल एंड्रॉयड फोन, टैब्स या लैपटॉप है ही नहीं, इसके अलावा यदि एक घर मे तीन बच्चे है तो क्या उनके पास तीन एंड्रॉयड फोन है कि नहीं, यदि है तो क्या उनके पास इंटरनेट डाटा है कि वह अपनी पढ़ाई कर सके। यह वह बच्चों की बुनियादी समस्या है जिसके बारे कभी प्रदेश सरकार ने सोचा ही नहीं होगा।
बड़ी ही चालाकी से विभाग केवल ये आंकड़े दर्शाता है कि कितने विद्यार्थी व्हाट्सएप पर अध्यापकों से जुड़े हैं। जबकि वास्तविकता में वे व्हाट्सएप नंबर उनके अभिभावकों के पास होते हैं जो दिन भर अपने रोज़गार के कारण घर से बाहर होते हैं। ऐसे में शाम को और सुबह के समय कितने विद्यार्थी शिक्षा से जुड़ पा रहे हैं इस विषय पर विभाग कबूतर की तरह आंखे बंद करके अपनी नाकामी छुपा रहा है। अच्छा होता अगर सरकार वास्तविक समस्या को स्वीकार करके उसके समाधान हेतु कुछ कदम उठाती न केवल आंकड़ों की जादूगरी से अबोध बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ किया जाता।
जबकि दूसरी तरफ मिड डे मील जैसी उम्दा योजना वर्तमान कोरोना के परिदृश्य में अव्यवहारिक सी हो चुकी है, जबकि बच्चे स्कूल ही नहीं जा पा रहे हैं और दोपहर का खाना वह घर पर ही खा लेते हैं, लेकिन ऐसी कोविड 19 पेंडेमिक के दौर में स्कूली बच्चों को दोपहर के भोजन की बनिस्पत इंटरनेट डाटा और एंड्रॉयड फ़ोन, टेबलेट्स और लैपटॉपस की ज्यादा आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि वह सरकारी आंकड़ों का अध्ययन भी करूँ तो साफ दिखता है कि प्राथमिक पाठशालाओं में प्रदेश में 2,90,158 छात्र पढ़ते हैं और उनको प्रतिदिन 4.90 पैसे के हिसाब मिडडे मील का पैसा मिल रहा है। यदि मिडल स्टैंडर्ड की बात करें तो प्रदेश में कुल छात्र 1,97,475 है और उनको प्रतिदिन 7.45 रुपये के हिसाब से मिडडे मील के पैसे का आबंटन किया जा रहा है जो कि वर्तमान कोविड 19 पेंडेमिक के चलते अव्यवहारिक है। यदि इन आकड़ो का विश्लेषण किया जाए तो प्रदेश के प्राथमिक छात्रों 14,21,774 रुपये और मिडल स्तर पर 14,71,188 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से दिया जा रहा है। जो कि करीब 28,92,962 रुपये प्रतिदिन बनता है।
यदि यही पैसा इन बच्चों के लिए इंटरनेट डाटा और टेबलेट खरीदने के लिए बच्चों को दिया जाता इन बच्चों की पढ़ाई सुचारू रूप से हो सकती थी। इसी पैसे से बच्चों को 10 से 12 इंच के टैबलेट दिए जा सकते थे और इसमें इनको करीब 10 से 12 टेराबाइट इंटरनेट डाटा प्रतिमाह उपलब्ध भी करवाया जा सकता था। बात यहीं पर खत्म नहीं होती प्रदेश में 25000 रुपये प्रति स्कूल सेनेटाइज़ेशन के लिए दिए गए जिनमे 1250 लीटर सेनेटाइज़ेशन कॉन्संट्रेटर खरीदा जा सकता है और करीब 18000 लीटर में कनवर्ट किया जा सकता है लेकिन जब स्कूल ही बंद हैं तो यह फैसला भी अव्यवहारिक है। इसके अलावा 20 रुपये प्रति छात्र को हाथ धोने के लिए साबुन के लिए पैसे दिए गए जिसमे करीब 7 लाख स्कूली बच्चों पर 1 करोड़ 40 लाख रुपये की फिजूलखर्ची की गई। बात यहीं पर भी नही थमी प्रदेश के हर स्कूल को 90 रुपये प्रति प्लेट या थाली खरीदने के मिडडे मील के लिए दिए गए जिसमे करीब 4 करोड़ 39 लाख रुपये की अवव्यहारिक खर्च प्रदेश सरकार के द्वारा किया गया।
जबकि यह पूर्ण रूप से कोविड19 का बहाना लेकर फिजूल खर्चा और अवव्यहारिक खर्च किया गया और इस बात में भी कोई संदेह नहीं है कि कितनी ही सेनेटज़र, मास्क और ग्लोव्स बनाने वाली फर्मे कुकरमुत्तों की तरह उग कर सरकार की गोद मे बैठ गई हैं। यदि कोविड 19 पेंडेमिक की बुनियादी जरूरत को प्रदेश के शिक्षा मंत्री, प्रदेश की शिक्षा सचिव और निदेशक समझते तो इन छात्रों को टेबलेटस के साथ साथ पढ़ाई के अच्छा खासा इंटरनेट डाटा उपलब्ध करवाया जा सकता था, क्योंकि आज की प्रासंगिकता के आधार पर मिडडे मील से जरूरी छात्रों को इंटरनेट डाटा और एंड्रॉयड फोन या 10 से 12 इंच के टेबलेटस की ज्यादा आवश्यकता है क्योंकि वह बच्चे घर पर रह कर अच्छी शिक्षा ग्रहण कर सके और दोपहर का भोजन तो इन बच्चों को स्वाभाविक तौर घर मिल ही रहा वैसे भी 4.90 रुपये और 7.45 रुपये प्रतिदिन मिडडे मील में पैसा देना आज कोविड 19 पेंडेमिक के दौर में असहज है।
आदर सहित
संदीप सांख्यान
महासचिव, जिला कांग्रेस
बिलासपुर (हि.प्र)