यह तो हम देख ही रहे हैं कि करोना वायरस ने बड़े बड़ों के चेहरों से मुखौटा उतार दिया है। इंसान के रिश्ते नाते, परिवार, परिचित सबका बखूबी परिचय हो रहा है।
कुछ प्रभावी ढंग से सामने आए है तो कहीं पर स्थिति बद से बदतर और मार्मिक रूप में सामने आई है। कई लोग बेसहारा तो कई बेघर हो गए हैं।
कईयों के पूरे के पूरे परिवार उजड़ गए तो कई खुद ही उजड़ गए।
खैर यह सब तो हमे कोरोना की लिखी जा रही किसी ना किसी कहानी में दिख ही रहा है।
हम यहां आपका ध्यान खींचना चाह रहे हैं एक ऐसी राजनीतिक दास्तान की तरफ जिसकी तरफ अभी तो किसी का ध्यान नहीं जा रहा पंरतु आने वाले समय में एक बड़े राजनीतिक उथलपुथल की सुगबुगाहट जरूर है।
अब जानना चाह रहे होगें ऐसा क्या हुआ है जिससे कोई बड़ा राजनीतिक संकट सा सकता है। हिमाचल में डबल इंजन की सरकार है सेंटर में भी बीजेपी और सूबे में भी बीजेपी तो ऐसा क्या कारण है कि केंद्र में बैठे हिमाचल के भाजपा नेता और हिमाचल के भाजपा नेताओं में छत्तीस का आंकड़ा है एक उत्तर की तरफ तो दूसरा दक्षिण की तरफ रुख करता है। अभी कुछ महीने पहले सरेआम दो ठाकुरों को भिड़ते देखा था। अनुराग ठाकुर और जयराम ठाकुर के बीच का तकरार हमने देखा था।
बात कर रहे हैं करोना के लिए जहां कई समाज सेबी संस्थाएं सामने आई है तो हर कोई कुछ ना कुछ मदद करना चाहता है और यह एक बहुत ही सराहनीय कदम है परन्तु जब हिमाचल के केंद्रीय नेताओं द्वारा कोई सहायता हिमाचल पहुंचाई जा रही है तो वो सरकार से होकर नहीं गुजर रही बल्कि अपने नाम से जगह जगह मदद पहुंचाई जा रही है और अपनी ही सरकार को इससे दूर रखा जा रहा है।
अगर आपकी ही सरकार है तो आप सरकार के जरिए क्यों नहीं मदद पहुंचा रहे इसके क्या मायने निकाले जाएं कि हिमाचल की भाजपा सरकार पर आपको विश्वास नहीं है क्या आपको लगता है कि जयराम सरकार के जरिए दी गई मदद जनता तक नहीं पहुंचेगी या आपको पता है कि जयराम तो एक्सिडेंटल मुख्यमंत्री हैं अपना नाम चमकाते हैं क्या पता आने वाले समय में कोई बड़ी जिम्मेदारी मिल जाए।
राजनीतिक संकट वाली बात सिर्फ यहीं पर ख़त्म नहीं होती। जयराम ठाकुर हालांकि 4 साल से मुख्यमंत्री हैं परन्तु अभी भी नौसिखिए ही लगते हैं बात चाहे हर डिसीजन के लिए केंद्र पर निर्भर रहने की हो, करोना गाइडलाइंस पर अस्तव्यस्तता, इस करोना जैसी महामारी में हिमाचल के कोने कोने में घूमने का शौक जिससे भले ही हजारों लोगों की ज़िंदगी को दाव पर लगाना पड़े। भरपूर कोशिश कर रहे हैं कि लोगों के बीच लोकप्रिय हो जाएं परन्तु उनकी यह सारी कोशिश एक आत्ममुग्धता से इतर कुछ नहीं लगती।
करोना की समीक्षा के नाम पर सैंकड़ों की भीड़ इस बात के सबूत हैं कि उनको हेडलाइंस में रहना है अच्छे कारणों से या बुरे कारणों से खबर बननी चाहिए।
जनाब के पास कर्मचारियों को तनख्वाह के लिए पैसे नहीं हैं परन्तु जहाज की यात्रा में कमी नहीं आनी चाहिए।
हमें क्या हमे तो पांच साल रहना है
कष्ट तो जनता ने सहना है
घूमने का मौका है घूम लेते हैं
समीक्षा तो बस एक बहाना है
कर्ज ले लेंगे क्योंकि कर्ज के लिए तो
पिछली सरकार को जिम्मदार ठहराना है
हिमाचल को तारना थोड़े ही है
इसे तो डुबोते रहना है।
संपादकीय