आज समूचा समाज व संसार एक महामारी की चपेट v गुज़र रहा है यह बात न तो किसी से छुपी है न इस बात को कोई नकार सकता है की आज डर व असंतोष की ज़िंदगी जीने को आमजन मजबूर है । लोगों को यह भी कहते सुना गया की हर 100 वर्ष बाद इस तरह की महमारी एक वार आती ही आती है इस बात का अनुमान 1920 मे हुये स्पेनिश फ्लू को लेकर लोग लगाते आ रहे हैं । इस बात से भी कोई मुकर नहीं सकता की अब लोग इस बीमारी के साथ जीने की आदत अब डाल रहे हैं । बीते वर्ष में जाने कितनी कीमती ज़िंदगियों को यह काल अपना ग्रास बना चुका है यह भी सब जानते हैं जब भी आमजन से बात होती है तो हर कोई यह कहता है की पता नहीं कब इस से निजात मिलेगी मैं यह कहूँ की हर कोई शख़्स इस महमारी से अब दुखी आ चुका है तो कोई दो राय नहीं होगी । उन लोगों के दर्द को मैं कैसे बयां कर सकता हूँ जिन लोगों ने अपनों को खो दिया है । उनके इस दर्द को शायद ही कोई लिख पाएगा या समझ पाएगा जो अपनी परिवार के सदस्य को अंतिम विधाई भी नहीं दे पाये । समूचा संसार आज एक गहन दर्द से गुज़र रहा है , जिस कारण लोगों के आत्मविश्वास मे बहुत कमी आ रही है । मानसिक तौर पर कमजोर होना या इसको खो देना कोई बड़ी बात नहीं क्योंकि जिन्होने अपनों को खो दिया और वे उस इंसान के अंतिम समय मे उसको देख तक नहीं पाये होने को यह भी हो सकता है की वो व्यक्ति एकांत का शिकार हो गया हो ।
उसका मानसिक संतुलन या उसके आत्मविस्वास को इतनी ठेस पहुंची हो को वो उस समय मे उसको सहन न कर पाया हो । हम किसी भी सतिथि का आकलन सही में नहीं कर सकते न ही कर पा रहें हैं । हर रोज़ एक नई खबर सुनने को मिलती है , क्या सच मे आज यह सतिथि इतनी भयानक है की हर कोई इस से दूर जाना चाहता है और अपनों को अंतिम विधाई भी नहीं दे प रहा । आज इस महामारी मे हम लोग संस्कारों का संस्कार होते देख रहे , आए दिन इंसानियत को बलि चड़ाते आ रहे हैं और सभी उसको देख रहे है । क्या इस बात को सोच अचरज नहीं की हमारी संस्कृति यह कहती थी अन्तिम समय मे संस्कार मे जाना बहुत पुण्य का काम होता है । वही दूसरी तरफ इस से इंसान आज भाग रहा है । आखिर आज हमरे हिदुत्व को क्या गया ? क्या हमारा जमीर मर चुका है या आंतविसवास इतना कमजोर हो चुका है की हम इस सब को देख रहे है? मैं निजी तौर पर कहूँ तो आज लोगों का आत्मविस्वास व मनोबल कम हो रहा है सबके आत्मविसवास मे इतनी कमी आ गई है की आने कई सदियाँ कम पड़ेगी इसको बढ़ाने में । आज पूरा विश्व इस महामारी की चपेट मे है पर क्या इस पर चलाई जा रही धारणा क्या आने वाले समय मे घातक सिद्ध नहीं होगी ? क्यों आज वो विशेषज्ञ चुप बैठे हैं ? क्यों आज लोगों के मनोबल को बड़ाने के बजाए काम किया जा रहा है । हम सभी को यह समझना होगा की हर सतिथि मनुष्य को अपने मनोबल को मजबूत करना होगा जो की आज हम नहीं कर पा रहे हैं । आज जब भी टीवी चलाते हैं तो उस पर एक खबर चलायी जा रही है उसके लिए समय निर्धारित नहीं किए जा रहे ।
सीधा सा प्रश्न है की किन आमजन के मनोबल को कमजोर किया जा रहा है । जहां तक मैं समझ रहा हों मनुष्य इतना भी कमजोर नहीं है और न था पर उसको कमजोर किया जा रहा है उसके मनोबल के साथ खेला जा रहा है । आज हमे खुस को मजबूत करने की जरूरत है । क्या यह एक सोची समझी साजिश नहीं हो सकती ? आज इस महामारी के दौर मे होने को कुछ भी हो सकता है । आज इंसान की भावनाओं के साथ मजाक हो रहा बीते वर्ष के साथ इस महामारी ने सबको इतना कमजोर कर दिया की सभी मात्र ज़िन्दा रहने को अपनी खुद की तरक्की समझ रहे हैं । इस सतिथि में मानसिक दशा को आंक पाना इतना आसान नहीं पर पत्राचार के माध्यम से सभी सरकारों से अपील करना चाहूँगा की मनोबल की मजबूती बाले कार्यक्रम पर ध्यान देने की जरूरत है । इस मुश्किल समय मे लोग रोजगार के साथ साथ अपनी कमाई हुई अजीवका को भी खतम कर चुके हैं । और आज इस पर ध्यान देने की सखत जरूरत है ।
हर इंसान यह सोच रहा है की काल पता कौन होगा कौन नहीं? बजाए इसके की वो अपने मनोबल को मजबूत रखे और करे । आज हम सभी को इस महामारी को देखते हुये लंबा समय बीत गया पर हम आजतक नहीं समझ पाये की अपने मनोबल व इच्छाशक्ति को हमें खुद बनाए रखना होगा इसके लिए कोई दूसरा नहीं आएगा पर हम लोगों को खुद अपने आप का आत्ममंथन करना होगा व अपनी व अपने परिवार की खुद ही सहायता भी करनी होगी ।
राजीव भूषण अम्बिया
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