हम भले ही विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में रहते हैं परन्तु यह बात हमारे ज़हन में ही नहीं है। हमे ध्यान ही नहीं रहता कि हमारे अधिकार क्या हैं। जो भी कोई प्रभावशाली व्यक्ति बोल दे हम आंख मूंद कर उसपर विश्वास कर लेते हैं। यह भी नहीं सोचते की क्या वो सही है या नहीं।
हमें आवाज़ उठाने की आदत नहीं है। हमारे दिमाग पर हमारे नेताओं और मीडिया का प्रभाव है।
और यह बात हमें ध्यान रखने की आवश्यकता है कि प्रभावशाली लोग हमेशा चाहते हैं कि लोग उनके अनुसार चलें और इसी को भेड़ चाल कहा जाता है।
कल के उदाहरण को ही लें तो यह बात पूरी तरह से साफ होती है कि हम कैसे अपने विचारों को बुनते हैं।
प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों के बीच की बैठक का लाइव प्रसारण होता है। पहले सभी मीडिया चैनल उसको लाइव चलाते हैं शायद खास मकसद रहा हो TRP. वैसे भी आजकल मीडिया चैनल सिर्फ टीआरपी का ही धंदा करते हैं जिसका प्रभाव ज्यादा है उसको हमेशा अच्छी बुक्स में रखा जाता है।
तो बात वहीं से शुरू करते हैं पहले लाइव टेलीकास्ट करते हैं परन्तु बाद में जब प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री को टोक देते हैं तो मीडिया भी प्रधानमंत्री की तरह प्रोटोकॉल की भाषा बोलना शुरू कर देता है।
मैं इस बात को यहीं छोड़ता हूं चाहता हूं कि आप अपने हिसाब से सोचें और क्या सही है क्या गलत है खुद समझे।
अब अगर बात करें कि क्या सच में प्रोटोकॉल था तो मैं इतना कहना चाहता हूं कि प्रोटोकॉल और कूटनीति एक दूसरे के पूरक हैं। मतलब साफ है दूसरे देशों से संबंधों में सबसे ज्यादा कूटनीति और प्रोटोकॉल का इस्तेमाल होता है। कूटनीति और गोपनीयता का भी बहन भाई का रिश्ता है। यहां पर बात को यही समाप्त किया जाता है मैं नहीं चाहता कि मैं जो बोलु उसी को आप सही माने तथ्य सामने है सोचिए की क्या कल की मीटिंग में गोपनीयता और कूटनीति की बात थी।
बात करते हैं कि अगर उपरोक्त कोई भी वजह नहीं तो फिर इतना बड़ा बखेड़ा कैसे खड़ा हो।
इसको समझने के लिए पीएमओ के पिछले 1-2 महीनों के कार्यक्रम को देखना होगा।
हम सब जानते हैं कि करोना कभी खत्म नहीं हुआ था। परन्तु राजनीतिक पार्टियों ने अपने किसी खास मकसद के लिए उसे खत्म होता हुआ दिखाया।
ताकि जितने चुनाव होने हैं उनको करवाया जा सके, पीएम केयर फंड पर कोई प्रश्न ना उठाए। लोगों में बेरोजगारी फैली है उसको छुपा दिया जाए कि अब सब सही है कमाओ और खाओ।
खैर बापिस जातें हैं कि क्यों जनता के मुद्दों पर की जाने वाली बैठकें सबके सामने आनी चाहिए इसलिए की अभी तक जितने भी कानून सरकार ने जनता के हित के लिए बनाएं हैं जनता उसमे हमेशा असंतुष्ट रही है। कई उदाहरण हैं अपने आसपास भी देखोगे और ऐसे उदाहरण हर स्कीम में मिलेंगे
जनता को पूरा अधिकार है कि उसको जानकारी मिले की उनके द्वारा चुने हुए लोग आखिर उनके लिए क्या सोचते हैं और क्या पॉलिसी लेकर आने वाले हैं इसी को लोकतंत्र कहा जाता है वरना मान लो कि देश में हमेशा तानाशाही ही रहेगी।
एडिटर की कलम से