पहला एम्स बना 1956 में। नेहरु मंत्रिमंडल में स्वास्थ्यमंत्री राजकुमारी अमृताकौर ने जब एम्स बनाने का प्रस्ताव नेहरु मंत्रिमंडल के सामने रखा तो नेहरु जी ने मना कर दिया। नेहरु जी का तर्क था कि अभी ऐसे किसी संस्थान को बनाने का बजट नहीं है हमारे पास। दूसरे और भी जरूरी काम है।
पैसे की कमी को देखते हुए राजकुमारी अमृता कौर ने फंड जुटाने का जिम्मा स्वयं उठाया। वो राजघराने से संबंध रखती थीं। उनके पास अचल संपत्तियां अपार थीं। उन्होंने शिमला की अपनी एक प्रापर्टी बेचकर शुरुआत की। इसके बाद उन्होंने दुनिया के कई देशों से पैसा इकट्ठा किया और अंतत: आल इंडिया इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंसेस का दिल्ली में निर्माण पूर्ण हुआ।
लेकिन उसके बाद 2003 तक दिल्ली का एम्स इकलौता ही रहा। 2003 में एक बार फिर एक महिला ने ही एम्स के विस्तार का विचार दिया। उस समय अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में स्वास्थ्य मंत्री सुषमा स्वराज ने सुझाव दिया कि जब दिल्ली के एम्स पर इतना बोझ है तो क्यों न इस बोझ को कम किया जाए। दूर दूर से लोग एम्स आते हैं, क्यों न अब एम्स को ही लोगों तक पहुंचाया जाए।
सुषमा स्वराज ने सिर्फ विचार ही नहीं दिया। तत्काल इस पर काम भी शुरु कर दिया और इस तरह भोपाल, भुवनेश्वर, जोधपुर, पटना, रायपुर और ऋषिकेश में 6 नये एम्स स्थापित करने का निर्णय हुआ। ये सभी 6 एम्स आज कार्यरत हैं। इसके बाद मनमोहन सिंह सरकार ने 2013 में एक नये एम्स की घोषणा की जो रायबरेली में लगभग बनकर तैयार है। इस साल से यहां भी रोगियों की भर्ती शुरु हो जाएगी।
इन 8 एम्स के अतिरिक्त नरेन्द्र मोदी सरकार ने जिन 14 एम्स को मंजूरी दिया है उसमें तीन को छोड़कर बाकी सब कार्यरत हो चुके हैं। कुछ में सिर्फ ओपीडी संचालित हो रही है। कुछ पूरी तरह से ऑपरेशनल हैं। कुछ का निर्माण शुरु होना बाकी है।
अगले तीन चार सालों में ये सभी 22 एम्स अपनी सेवाएं देने लगेंगे। एम्स का अपना एक मानक है और एम्स निर्माण में भारी भरकम पूंजी निवेश होता है। अब एम्स का देशभर में निर्माण स्वास्थ्य मंत्रालय का एक नियमित कार्यक्रम हो गया है इसलिए आनेवाले समय में कुछ और नये एम्स की घोषणा और निर्माण हो लेकिन एम्स जैसी विश्वस्तरीय चिकित्सा सुविधा के लिए अगर किसी को धन्यवाद दिया जाएगा तो वो सिर्फ दो महिलाएं हैं। राजकुमारी अमृता कौर व सुषमा जी को प्रणाम
Sanjay Tiwari Shandiya